दैनिक रुड़की (राहुल सक्सेना):::
रुड़की। श्री पंचदश नाम जूना अखाड़े द्वारा अनुसूचित जाति से जगतगुरु बनाने पर भारत के समस्त साधु संत और सनातन धर्म प्रेमी इस निर्णय का स्वागत करते है। इससे पूर्व भी अनेक अनुसूचित जातियों के बन्धुओं को महामंडलेश्वर की उपाधि से विभूषित किया जा चुका है। 10 नाम सन्यास परंपरा जाति के आधार पर भेदभाव को नहीं मानती है। हरि का भजे सो हरी का होय। श्री पंचदस नाम जूना अखाडा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि महाराज ने कहा कि जाति के आधार पर समाज को बांटने की परंपरा सनातन परंपरा नहीं है। मुगल काल और अंग्रेजों ने हिंदू धर्म को कमजोर करने के लिए हिंदूओं को धर्म और जातियों में विभाजित किया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है की जातिवाद रहित समाज की स्थापना सनातन हिंदू में होनी चाहिए। श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा ने इससे पूर्व भी लंबे समय से अपेक्षित और उपहास का पात्र बने किन्नर समाज को मान सम्मान देकर समाज में प्रतिष्ठित किया है। आज अनेक किन्नर समाज के लोग दसनामी सन्यासी है तथा महामंडलेश्वर जैसे वरिष्ठ पद को प्राप्त धर्म उपदेश कर रहे हैं।
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